लेखनी प्रतियोगिता -30-Aug-2022 गुरु
दया धाम करुणा की मूरत सभ्य सरलता जिनमें
दिखते बाहर से कठोर पर,स्निग्ध तरलता उनमें।
सदा नम्र कठोर पर्वत सम तेज सदा मस्तक पर ,
गुणी गण्य गुणवान महत जो ज्ञान बसा है अंतर ।।
गुरु भारी होता वै भारी ज्ञान नीति की बातों से ,
अज्ञान ऊष्म तत्क्षण हरते ओ सूक्ष्म नीति वातों से।
रहता पग अंगुष्ठ लाल प्रतिदिन मस्तक चुंबन से ,
शिव पग पूजे जाते हों ज्यों पारिजात सुमन से।।
होते गुरु अनेक अनेकों उनकी है परिभाषा ,
वक्ता राही मित्र पिता जो मार्ग हमें समझाता।
गुरु वहीं जिनसे हमको कुछ ज्ञान मिला नूतन है,
ओ चाहे जैसा जो भी पर उसके लिए नमन है।।
जो हमको मार्ग बतलाता सदा सफलता का ही,
रहा कठिन किंतु उस पथ पर लक्ष्य अटल मिला ही।
और कहें क्या गुरु गुरु है सबसे अटल भुवन में ,
सभी पूजते उसी तत्व को हर दिग हर त्रिभुवन में।
गुरु हमारा अंतर्मन है गुरु प्रेमिका की वाणी ,
गुरु पिता माता भी ओ है और गुरु हर प्राणी ।
ज्ञान मिले जिनसे समझो ओ योग्य और गुणवान,
गुरु जग से है गुरु और गुरु सबसे अधिक महान।।
लेखक अरुण कुमार शुक्ल
आँचल सोनी 'हिया'
31-Aug-2022 09:43 PM
Achha likha hai aapne 🌺🙏
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Mahendra Bhatt
31-Aug-2022 03:40 PM
बहुत खूब
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Renu
31-Aug-2022 03:38 PM
👍👍
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